पोषक तत्व (Nutrients) Topic For ssc rrb Exam पोषक तत्व (Nutrients) की संपूर्ण जानकारी हिंदी में - विटामिन, खनिज, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के कार्य, स्रोत और कमी से रोग। FOR SSC RRB EXAM पोषक तत्व क्या हैं? पोषक तत्व वे रासायनिक पदार्थ हैं जो भोजन में पाए जाते हैं और शरीर की वृद्धि, विकास, ऊर्जा उत्पादन और रखरखाव के लिए आवश्यक होते हैं। ये शरीर के सामान्य कार्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पोषक तत्वों का वर्गीकरण पोषक तत्वों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है: 1. मैक्रोन्यूट्रिएंट्स (Macronutrients) - वृहत पोषक तत्व ये बड़ी मात्रा में आवश्यक होते हैं: (A) कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) परिभाषा: कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने कार्बनिक यौगिक जो शरीर के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। रासायनिक सूत्र: (CH₂O)n या Cx(H₂O)y प्रकार: सरल शर्करा (Simple Sugars): ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सुक्रोज जटिल कार्बोहाइड्रेट: स्टार्च, सेल्यूलोज, ग्लाइकोजन मुख्य स्रोत: चावल, गेहूं, आलू, मक्का, फल, शहद कार्य: शरीर को ऊर्जा प्रदान करना (1 ग्राम = 4 किलोकैलोरी) ...
🟢 साइमन कमीशन (Simon Commission, 1927 – 1930)
पृष्ठभूमि
- 1919 का मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (Government of India Act, 1919) में प्रावधान था कि 10 साल बाद सुधारों की समीक्षा हेतु एक आयोग गठित होगा।
- लेकिन ब्रिटिश सरकार ने 1927 में ही आयोग गठित कर दिया (यानी 2 साल पहले)।
गठन
- अध्यक्ष: सर जॉन साइमन।
- कुल सदस्य: 7 → सभी ब्रिटिश, कोई भी भारतीय सदस्य नहीं।
- उद्देश्य: 1919 के सुधारों की समीक्षा करना और आगे के लिए सुझाव देना।
प्रतिक्रिया
- पूरे भारत में इसका भारी विरोध हुआ।
- नारा: “Simon Go Back”।
- लाला लाजपत राय ने लाहौर में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
- उन पर पुलिस लाठीचार्ज हुआ (जेम्स स्कॉट के आदेश पर) और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
- कांग्रेस, मुस्लिम लीग (जिन्ना गुट को छोड़कर), हिन्दू महासभा, और अन्य सभी दलों ने विरोध किया।
परिणाम
- कमीशन ने 1930 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- रिपोर्ट के आधार पर 1930–32 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conferences) आयोजित हुए।
- अंततः इससे 1935 का भारत सरकार अधिनियम (Government of India Act, 1935) बना।
🟢 सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement, 1930 – 1934)
पृष्ठभूमि
- 1927 में साइमन कमीशन का विरोध हुआ।
- 1928 में नेहरू रिपोर्ट आई → डोमिनियन स्टेटस की माँग।
- दिसंबर 1929 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन (अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू) → कांग्रेस ने "पूर्ण स्वराज्य" का लक्ष्य तय किया।
- 26 जनवरी 1930 को पहला स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
शुरुआत
- 1930 में कांग्रेस ने आंदोलन की जिम्मेदारी गांधीजी को दी।
- गांधीजी ने 11 मांगों की सूची सरकार को भेजी (नमक कर, विदेशी वस्त्र, शराबबंदी, आदि)।
- सरकार ने इनकार किया → गांधी ने आंदोलन की घोषणा की।
दांडी मार्च (12 मार्च – 6 अप्रैल, 1930)
- गांधीजी ने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील (385 किमी) की पदयात्रा की।
- 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुँचकर नमक कानून तोड़ा।
- यह प्रतीक था कि भारतवासी अब अंग्रेजी कानून का पालन नहीं करेंगे।
आंदोलन का स्वरूप
- नमक कर का उल्लंघन।
- जंगल कानून तोड़ना।
- करों का बहिष्कार।
- विदेशी वस्त्रों और सामान का बहिष्कार।
- जनता का बड़े पैमाने पर भागीदारी।
सरकार की प्रतिक्रिया
- लगभग 90,000 लोग गिरफ्तार किए गए।
- गांधी, नेहरू, पटेल आदि नेता जेल गए।
गांधी-इरविन समझौता (मार्च 1931)
- गांधीजी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझौता हुआ।
- शर्तें:
- कांग्रेस आंदोलन बंद करेगी।
- राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाएगा।
- गांधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (लंदन, 1931) में भाग लेंगे।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (सितम्बर–दिसम्बर 1931)
- गांधीजी ने "कांग्रेस और भारतीय जनता के प्रतिनिधि" के रूप में भाग लिया।
- असफल रहा → मुख्य विवाद "अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व" और "साम्प्रदायिक पुरस्कार" पर था।
आंदोलन की पुनः शुरुआत
- 1932 में गांधीजी गिरफ्तार हुए।
- यरवदा जेल में गांधीजी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर से पूना समझौता (1932) किया।
- इसमें दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर सहमति बनी।
आंदोलन का अंत
- 1934 में कांग्रेस ने आंदोलन वापस ले लिया।
- आंदोलन सफल न होते हुए भी इसने अंग्रेजों को जन-शक्ति का वास्तविक अंदाज़ा करा दिया।
🟢 CDM और Simon Commission का संबंध
- Simon Commission (1927) के विरोध ने कांग्रेस को एकजुट किया और पूर्ण स्वराज्य की दिशा दी।
- उसी से प्रेरित होकर कांग्रेस ने 1930 में Civil Disobedience Movement शुरू किया।
- यानी Simon Commission → Nehru Report → Purna Swaraj (1929) → Civil Disobedience Movement (1930)।
🟢 निष्कर्ष
👉 साइमन कमीशन भारतीयों को राजनीतिक सुधारों से बाहर रखने की अंग्रेजों की मानसिकता का प्रतीक था।
👉 सविनय अवज्ञा आंदोलन ने जनता को पहली बार बड़े पैमाने पर कानून तोड़ने के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा।
👉 इन दोनों घटनाओं ने मिलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया।
TABLE FORM
Simon Commission & Civil Disobedience Movement – Table Format
| वर्ष / घटना | मुख्य विशेषताएँ | परिणाम / प्रभाव |
|---|---|---|
| 1927 – साइमन कमीशन का गठन | - अध्यक्ष: सर जॉन साइमन - कुल 7 सदस्य, सभी ब्रिटिश, कोई भारतीय नहीं |
- पूरे भारत में विरोध - नारा: “Simon Go Back” |
| 1928 – विरोध और लाठीचार्ज | - लाला लाजपत राय ने लाहौर में विरोध का नेतृत्व किया - पुलिस लाठीचार्ज में गंभीर घायल → मृत्यु |
- भारत में जनाक्रोश और तेज हुआ - जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता उभरे |
| 1928 – नेहरू रिपोर्ट | - साइमन कमीशन के जवाब में भारतीय नेताओं ने अपनी रिपोर्ट तैयार की - अध्यक्ष: मोटीलाल नेहरू |
- डोमिनियन स्टेटस की मांग रखी गई |
| 1929 – लाहौर अधिवेशन | - अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू - "पूर्ण स्वराज्य" की घोषणा - 26 जनवरी 1930: पहला स्वतंत्रता दिवस |
- आंदोलन की दिशा तय हुई |
| 1930 – सविनय अवज्ञा आंदोलन (CDM) की शुरुआत | - गांधीजी ने 11 मांगें रखीं - 12 मार्च: दांडी मार्च (240 मील) - नमक कानून तोड़ा |
- जनभागीदारी अभूतपूर्व - हजारों गिरफ्तार |
| 1931 – गांधी-इरविन समझौता | - कांग्रेस आंदोलन बंद करेगी - राजनीतिक कैदी छोड़े जाएंगे - गांधी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल होंगे |
- आंदोलन कुछ समय के लिए रुका |
| 1931 – द्वितीय गोलमेज सम्मेलन | - गांधी ने भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व किया - मुख्य विवाद: अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व |
- सम्मेलन विफल |
| 1932 – पुनः आंदोलन और पूना समझौता | - गांधी गिरफ्तार - अंबेडकर–गांधी के बीच पूना समझौता (दलित आरक्षण पर सहमति) |
- आंदोलन कमजोर पड़ा |
| 1934 – CDM का अंत | - कांग्रेस ने आंदोलन वापस लिया | - अंग्रेजों को भारत की जनशक्ति का एहसास हुआ - आगे के संघर्ष का मार्ग प्रशस्त |
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